[目录]
西游记 .吴承恩.

  1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78 | 79 | 80 | 81 | 82 | 83 | 84 | 85 | 86 | 87 | 88 | 89 | 90 | 91 | 92 | 93 | 94 | 95 | 96 | 97 | 98 | 99 | 100 | 101 | 102 | 103 | 104 | 105 | 106 | 107 | 108 | 109 | 110 | 111 | 112 | 113 | 114 | 115 | 116 | 117 | 118 | 119 | 120 | 121 | 122 | 123 | 124 | 125 | 126 | 127 | 128 | 129 | 130 | 131 | 132 | 133 | 134 | 135 | 136 | 137 | 138 | 139 | 140 | 141 | 142 | 143 | 144 | 145 | 146 | 147 | 148 | 149 | 150 | 151 | 152 | 153 | 154 | 155 | 156 | 157 | 158 | 159 | 160 | 161 | 162 | 163 | 164 | 165 | 166 | 167 | 168 | 169 | 170 | 171 | 172 | 173 | 174 | 175 | 176 | 177 | 178 | 179 | 180 | 181 | 182 | 183 | 184 | 185 | 186 | 187 | 188 | 189 | 190 | 191 | 192 | 193 | 194 | 195 | 196 | 197 | 198 | 199 | 200 | 201 | 202 | 203 | 204 | 205 | 206 | 207 | 208 | 209 | 210 | 211 | 212 | 213 | 214 | 215 | 216 | 217 | 218 | 219 | 220 | 221 | 222 | 223 | 224 | 225 | 226 | 227 | 228 | 229 | 230 | 231 | 232 | 233 | 234 | 235 | 236 | 237 | 238 | 239 | 240 | 241 | 242 | 243 | 244 | 245 | 246 | 247 | 248 | 249 | 250 | 251 | 252 | 253 | 254 | 255 | 256 | 257 | 258 | 259 | 260 | 261 | 262 | 263 | 264 | 265 | 266 | 267 | 268 | 269 | 270 | 271 | 272 | 273 | 274 | 275 | 276 | 277 | 278 | 279 | 280 | 281 | 282 | 283 | 284 | 285 | 286 | 287 | 288 | 289 | 290 | 291 | 292 | 293 | 294 | 295 | 296 | 297 | 298 | 299 | 300 | 301 | 302 | 303 | 304 | 305 | 306 | 307 | 308 | 309 | 310 | 311 | 312 | 313
上一页 下一页
  概乾坤,荣福禄,福寿无疆今喜得。
  三老乘祥谒大仙,福堂和气皆无极。
 
  那仙童看见,即忙报道:“师父,海上三星来了。”镇元子正与唐僧师弟闲叙,闻报即降阶奉迎。那八戒见了寿星,近前扯住,笑道:“你这肉头老儿,许久不见,还是这般脱洒,帽儿也不带个来。”遂把自家一个僧帽,扑的套在他头上,扑着手呵呵大笑道:“好,好,好!真是加冠进禄也!”那寿星将帽子掼了骂道:“你这个夯货,老大不知高低!”八戒道:“我不是夯货,你等真是奴才!”福星道:“你倒是个夯货,反敢骂人是奴才!”八戒又笑道:“既不是人家奴才,好道叫做添寿、添福、添禄?”
 
  那三藏喝退八戒,急整衣拜了三星。那三星以晚辈之礼见了大仙,方才叙坐。坐定,禄星道:“我们一向久阔尊颜,有失恭敬,今因孙大圣搅扰仙山,特来相见。”大仙道:“孙行者到蓬莱去的?”寿星道:“是因为伤了大仙的丹树,他来我处求方医治,我辈无方,他又到别处求访,但恐违了圣僧三日之限,要念紧箍儿咒。我辈一来奉拜,二来讨个宽限。”三藏闻言,连声应道:“不敢念,不敢念。”
 
  正说处,八戒又跑进来,扯住福星,要讨果子吃。他去袖里乱摸,腰里乱吞,不住的揭他衣服搜检。三藏笑道:“那八戒是甚么规矩!”八戒道:“不是没规矩,此叫做番番是福。”三藏又叱令出去。那呆子跨出门,瞅着福星,眼不转睛的发狠,福星道:“夯货!我那里恼了你来,你这等恨我?”八戒道:“不是恨你,这叫回头望福。”那呆子出得门来,只见一个小童,拿了四把茶匙,方去寻锺取果看茶,被他一把夺过,跑上殿,拿着小磬儿,用手乱敲乱打,两头玩耍。大仙道:“这个和尚,越发不尊重了!”八戒笑道:“不是不尊重,这叫做四时吉庆。”
 
  且不说八戒打诨乱缠,却表行者纵祥云离了蓬莱,又早到方丈仙山。这山真好去处,有诗为证,诗曰:
 
  方丈巍峨别是天,太元宫府会神仙。
  紫台光照三清路,花木香浮五色烟。
  金凤自多槃蕊阙,玉膏谁逼灌芝田?
  碧桃紫李新成熟,又换仙人信万年。
 
  那行者按落云头,无心玩景,正走处,只闻得香风馥馥,玄鹤声鸣,那壁厢有个神仙。但见:
 
  盈空万道霞光现,彩雾飘飖光不断。
  丹凤衔花也更鲜,青鸾飞舞声娇艳。
  福如东海寿如山,貌似小童身体健。
  壶隐洞天不老丹,腰悬与日长生篆。
  人间数次降祯祥,世上几番消厄愿。
  武帝曾宣加寿龄,瑶池每赴蟠桃宴。
  教化众僧脱俗缘,指开大道明如电。
  也曾跨海祝千秋,常去灵山参佛面。
  圣号东华大帝君,烟霞第一神仙眷。
 
  孙行者觌面相迎,叫声:“帝君,起手了。”那帝君忙回礼道:“大圣,失迎。请荒居奉茶。”遂与行者搀手而入。果然是贝阙仙宫,看不尽瑶池琼阁。方坐待茶,只见翠屏后转出一个童儿。他怎生打扮:
 
  身穿道服飘霞烁,腰束丝绦光错落。
上一页 下一页
  1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78 | 79 | 80 | 81 | 82 | 83 | 84 | 85 | 86 | 87 | 88 | 89 | 90 | 91 | 92 | 93 | 94 | 95 | 96 | 97 | 98 | 99 | 100 | 101 | 102 | 103 | 104 | 105 | 106 | 107 | 108 | 109 | 110 | 111 | 112 | 113 | 114 | 115 | 116 | 117 | 118 | 119 | 120 | 121 | 122 | 123 | 124 | 125 | 126 | 127 | 128 | 129 | 130 | 131 | 132 | 133 | 134 | 135 | 136 | 137 | 138 | 139 | 140 | 141 | 142 | 143 | 144 | 145 | 146 | 147 | 148 | 149 | 150 | 151 | 152 | 153 | 154 | 155 | 156 | 157 | 158 | 159 | 160 | 161 | 162 | 163 | 164 | 165 | 166 | 167 | 168 | 169 | 170 | 171 | 172 | 173 | 174 | 175 | 176 | 177 | 178 | 179 | 180 | 181 | 182 | 183 | 184 | 185 | 186 | 187 | 188 | 189 | 190 | 191 | 192 | 193 | 194 | 195 | 196 | 197 | 198 | 199 | 200 | 201 | 202 | 203 | 204 | 205 | 206 | 207 | 208 | 209 | 210 | 211 | 212 | 213 | 214 | 215 | 216 | 217 | 218 | 219 | 220 | 221 | 222 | 223 | 224 | 225 | 226 | 227 | 228 | 229 | 230 | 231 | 232 | 233 | 234 | 235 | 236 | 237 | 238 | 239 | 240 | 241 | 242 | 243 | 244 | 245 | 246 | 247 | 248 | 249 | 250 | 251 | 252 | 253 | 254 | 255 | 256 | 257 | 258 | 259 | 260 | 261 | 262 | 263 | 264 | 265 | 266 | 267 | 268 | 269 | 270 | 271 | 272 | 273 | 274 | 275 | 276 | 277 | 278 | 279 | 280 | 281 | 282 | 283 | 284 | 285 | 286 | 287 | 288 | 289 | 290 | 291 | 292 | 293 | 294 | 295 | 296 | 297 | 298 | 299 | 300 | 301 | 302 | 303 | 304 | 305 | 306 | 307 | 308 | 309 | 310 | 311 | 312 | 313
[目录]