[目录]
西游记 .吴承恩.

  1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78 | 79 | 80 | 81 | 82 | 83 | 84 | 85 | 86 | 87 | 88 | 89 | 90 | 91 | 92 | 93 | 94 | 95 | 96 | 97 | 98 | 99 | 100 | 101 | 102 | 103 | 104 | 105 | 106 | 107 | 108 | 109 | 110 | 111 | 112 | 113 | 114 | 115 | 116 | 117 | 118 | 119 | 120 | 121 | 122 | 123 | 124 | 125 | 126 | 127 | 128 | 129 | 130 | 131 | 132 | 133 | 134 | 135 | 136 | 137 | 138 | 139 | 140 | 141 | 142 | 143 | 144 | 145 | 146 | 147 | 148 | 149 | 150 | 151 | 152 | 153 | 154 | 155 | 156 | 157 | 158 | 159 | 160 | 161 | 162 | 163 | 164 | 165 | 166 | 167 | 168 | 169 | 170 | 171 | 172 | 173 | 174 | 175 | 176 | 177 | 178 | 179 | 180 | 181 | 182 | 183 | 184 | 185 | 186 | 187 | 188 | 189 | 190 | 191 | 192 | 193 | 194 | 195 | 196 | 197 | 198 | 199 | 200 | 201 | 202 | 203 | 204 | 205 | 206 | 207 | 208 | 209 | 210 | 211 | 212 | 213 | 214 | 215 | 216 | 217 | 218 | 219 | 220 | 221 | 222 | 223 | 224 | 225 | 226 | 227 | 228 | 229 | 230 | 231 | 232 | 233 | 234 | 235 | 236 | 237 | 238 | 239 | 240 | 241 | 242 | 243 | 244 | 245 | 246 | 247 | 248 | 249 | 250 | 251 | 252 | 253 | 254 | 255 | 256 | 257 | 258 | 259 | 260 | 261 | 262 | 263 | 264 | 265 | 266 | 267 | 268 | 269 | 270 | 271 | 272 | 273 | 274 | 275 | 276 | 277 | 278 | 279 | 280 | 281 | 282 | 283 | 284 | 285 | 286 | 287 | 288 | 289 | 290 | 291 | 292 | 293 | 294 | 295 | 296 | 297 | 298 | 299 | 300 | 301 | 302 | 303 | 304 | 305 | 306 | 307 | 308 | 309 | 310 | 311 | 312 | 313
上一页 下一页
成真,且听下回分解。
 

第五十六回  神狂诛草寇 道昧放心猿
 
 
  诗曰:
 
  灵台无物谓之清,寂寂全无一念生。
  猿马牢收休放荡,精神谨慎莫峥嵘。
  除六贼,悟三乘,万缘都罢自分明。
  色邪永灭超真界,坐享西方极乐城。
 
  话说唐三藏咬钉嚼铁,以死命留得一个不坏之身,感蒙行者等打死蝎子精,救出琵琶洞。一路无词,又早是朱明时节,但见那:
 
  熏风时送野兰香,濯雨才晴新竹凉。
  艾叶满山无客采,蒲花盈涧自争芳。
  海榴娇艳游蜂喜,溪柳阴浓黄雀狂。
  长路那能包角黍,龙舟应吊汨罗江。
 
  他师徒们行赏端阳之景,虚度中天之节,忽又见一座高山阻路。长老勒马回头叫道:“悟空,前面有山,恐又生妖怪,是必谨防。”行者等道:“师父放心,我等皈命投诚,怕甚妖怪!”长老闻言甚喜,加鞭催骏马,放辔趱蛟龙。须臾上了山崖,举头观看,真个是:
 
  顶巅松柏接云青,石壁荆榛挂野藤。万丈崔巍,千层悬削。万丈崔巍峰岭峻,千层悬削壑崖深。苍苔碧藓铺阴石,古桧高槐结大林。林深处,听幽禽,巧声睆睆实堪吟。涧内水流如泻玉,路旁花落似堆金。山势恶,不堪行,十步全无半步平。狐狸糜鹿成双遇,白鹿玄猿作对迎。忽闻虎啸惊人胆,鹤鸣振耳透天庭。黄梅红杏堪供食,野草闲花不识名。
 
  四众进山,缓行良久,过了山头,下西坡,乃是一段平阳之地。猪八戒卖弄精神,教沙和尚挑着担子,他双手举钯上前赶马。那马更不惧他,凭那呆子嗒笞笞的赶,只是缓行不紧。行者道:“兄弟,你赶他怎的?让他慢慢走罢了。”八戒道:“天色将晚,自上山行了这一日,肚里饿了,大家走动些,寻个人家化些斋吃。”行者闻言道:“既如此,等我教他快走。”把金箍棒晃一晃,喝了一声,那马溜了缰,如飞似箭,顺平路往前去了。
 
  你说马不怕八戒,只怕行者,何也?行者五百年前曾受玉帝封在大罗天御马监养马,官名弼马温,故此传留至今,是马皆惧猴子。
 
  那长老挽不住缰口,只扳紧着鞍桥,让他放了一路辔头,有二十里向开田地,方才缓步而行。
 
  正走处,忽听得一棒锣声,路两边闪出三十多人,一个个枪刀棍棒,拦住路口道:“和尚!那里走!”唬得个唐僧战兢兢,坐不稳跌下马来,蹲在路旁草科里,只叫:“大王饶命,大王饶命!”那为头的两个大汉道:“不打你,只是有盘缠留下。”长老方才省悟,知他是伙强人,却欠身抬头观看,但见他:
上一页 下一页
  1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78 | 79 | 80 | 81 | 82 | 83 | 84 | 85 | 86 | 87 | 88 | 89 | 90 | 91 | 92 | 93 | 94 | 95 | 96 | 97 | 98 | 99 | 100 | 101 | 102 | 103 | 104 | 105 | 106 | 107 | 108 | 109 | 110 | 111 | 112 | 113 | 114 | 115 | 116 | 117 | 118 | 119 | 120 | 121 | 122 | 123 | 124 | 125 | 126 | 127 | 128 | 129 | 130 | 131 | 132 | 133 | 134 | 135 | 136 | 137 | 138 | 139 | 140 | 141 | 142 | 143 | 144 | 145 | 146 | 147 | 148 | 149 | 150 | 151 | 152 | 153 | 154 | 155 | 156 | 157 | 158 | 159 | 160 | 161 | 162 | 163 | 164 | 165 | 166 | 167 | 168 | 169 | 170 | 171 | 172 | 173 | 174 | 175 | 176 | 177 | 178 | 179 | 180 | 181 | 182 | 183 | 184 | 185 | 186 | 187 | 188 | 189 | 190 | 191 | 192 | 193 | 194 | 195 | 196 | 197 | 198 | 199 | 200 | 201 | 202 | 203 | 204 | 205 | 206 | 207 | 208 | 209 | 210 | 211 | 212 | 213 | 214 | 215 | 216 | 217 | 218 | 219 | 220 | 221 | 222 | 223 | 224 | 225 | 226 | 227 | 228 | 229 | 230 | 231 | 232 | 233 | 234 | 235 | 236 | 237 | 238 | 239 | 240 | 241 | 242 | 243 | 244 | 245 | 246 | 247 | 248 | 249 | 250 | 251 | 252 | 253 | 254 | 255 | 256 | 257 | 258 | 259 | 260 | 261 | 262 | 263 | 264 | 265 | 266 | 267 | 268 | 269 | 270 | 271 | 272 | 273 | 274 | 275 | 276 | 277 | 278 | 279 | 280 | 281 | 282 | 283 | 284 | 285 | 286 | 287 | 288 | 289 | 290 | 291 | 292 | 293 | 294 | 295 | 296 | 297 | 298 | 299 | 300 | 301 | 302 | 303 | 304 | 305 | 306 | 307 | 308 | 309 | 310 | 311 | 312 | 313
[目录]