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资治通鉴 181-190 .司马光.

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  [2]炀帝因为各蕃部落的酋长都汇集在洛阳,丁丑(十五日),在端门街举行盛大的百戏表演。戏场周围长五千步,演奏乐器的人有一万八千人,乐声几十里以外都能听到,从黄昏至清晨,灯火照亮了天地,至月未才结束。耗费巨万,从此每年都是这样。

  诸蕃请入丰都市交易,帝许之。先命整饰店肆,檐宇如一,盛设帷帐,珍货充积,人物华盛,卖菜者亦藉以龙须席。胡客或过酒食店,悉令邀延就坐,醉饱而散,不取其直,绐之曰:“中国丰饶,酒食例不取直。”胡客皆惊叹。其黠者颇觉之,见以缯帛缠树,曰:“中国亦有贫者,衣不盖形,何如以此物与之,缠树何为?”市人惭不能答。

  各蕃部落酋长请求到丰都市场进行交易,炀帝允许了。他先下令整修装饰店铺,屋檐式样要划一,店内挂设帷帐,珍稀货物摆满店堂,商人们服饰华丽,连卖菜人也要用龙须席铺地。胡客凡有经过酒食店的,命令店主都要邀请入座,酒足饭饱之后,不取酬偿,并诓骗他们说:“中国富饶,酒食照例不要钱。”胡人都惊叹。他们中聪明的人有些发觉,看到用丝绸缠树,就问:“中国也有穷人,衣不蔽体,为什么不把这些丝绸给他们做衣服,却用来缠树呢?”市上的人惭愧得无言以对。

  帝称裴矩之能,谓群臣曰:“裴矩大识朕意,凡所陈奏,皆朕之成算,未发之顷,矩辄以闻;自非奉国尽心,孰能若是!”是时矩与右翊卫大将军宇文述、内史侍郎虞世基、御史大夫裴蕴、光禄大夫郭衍皆以谄谀有宠。述善于供奉,容止便辟,侍卫者咸取则焉。郭衍尝劝帝五日一视朝,曰:“无效高祖,空自勤苦。”帝益以为忠,曰:“唯有郭衍心与朕同。”

  炀帝称赞裴矩能干,对群臣说:“裴矩非常能体会朕的意图,凡是他陈述奏报的,都是朕已经想好而还未说出来的说,裴矩就已经说给朕听了,要不是为国尽心,哪里能够这样!”这时裴矩与右翊卫大将军宇文述、内史侍郎虞世基、御史大夫裴蕴、光禄大夫郭衍都因为会阿谀逢承而得到炀帝宠信。宇文述善于侍奉炀帝,一举一动都逢迎谄媚,侍卫炀帝的人都以他为榜样。郭衍曾经劝炀帝五天上一次朝,说:“不要效仿文帝。白白地让自己劳累、辛苦。”炀帝越发认为郭衍忠心,说:“只有郭衍和朕同心。”

  帝临朝凝重,发言降诏,辞义可观;而内存声色,其在两都及巡游,常以僧、尼、道士、女官自随,谓之四道场。梁公萧钜,琮之弟子;千牛左右宇文,庆之孙也;皆有宠于帝。帝每日于苑中林亭间盛陈酒馔,敕燕王与钜、及高祖嫔御为一席,僧、尼、道士、女官为一席,帝与诸宠姬为一席,略相连接,罢朝即从之宴饮,更相劝侑,酒酣淆乱,靡所不至,以是为常。杨氏妇女之美者,往往进御。出入宫掖,不限门禁,至于妃嫔、公主皆有丑声,帝亦不之罪也。

  炀帝上朝时神态庄重,说话、颁旨,言辞堂皇;但是他内心却喜欢声色,他在东、西两京和巡游各地时,常常让僧、尼、道士、女道士跟随,称之为四道场。梁公萧矩是萧琮的侄子;千牛左右宇文是宇文庆的孙子,都被炀帝宠信。炀帝每日在苑中林亭间大摆酒筵,命令燕王杨与萧矩、宇文以及文帝的妃嫔坐一席;僧、尼 、道士、女道士坐一席;炀帝和自己宠爱的姬妃为一席,各席相连。炀帝退朝后即入席宴饮,互相劝酒,酒酣之际就混乱了,无所不干,这是常有的事。杨氏妇女有漂亮的,往往被进献给炀帝。宇文出入皇宫不限娒沤劣阱伞⒐鞫加胁缓玫拿镜垡膊还肿锼恰*

  [3]帝复遣朱宽招抚流求,流求不从,帝遣虎贲郎将庐江陈棱、朝请大夫 同安张镇周发东阳兵万余人,自义安泛海击之。行月余,至其国,以镇周为先锋。流求王渴剌兜遣兵逆战;屡破之,遂至其都。渴剌兜自将出战,又败,退入栅;棱等乘胜攻拔之,斩渴剌兜,虏其民万余口而还。二月,乙巳,棱等献流求俘,颁赐百官,进棱位右光禄大夫,镇周金紫光禄大夫。

  [3]炀帝又派朱宽去招抚流求国。流求不顺从,炀帝派虎贲郎将庐江人陈棱、朝请大夫同安人张镇周征发东阳兵一万余人,从义安渡海去进攻流求。他们在海上航行了一个多月,才到达流求,以张镇周为先锋。流求国王渴刺兜派兵迎战,隋军屡次击败流求军,于是就攻到流求国都。渴刺兜亲自率军出战,又被打败,退入营栅内,陈棱等人乘胜攻克了流求国都,杀死渴刺兜,俘莸流求人一万余名返回。二月,乙巳(十三日),陈棱等人向炀帝献流求俘,炀帝赏赐百官,提升陈棱为右光禄大夫,张镇周为金紫光禄大夫。

  [4]乙卯,诏以“近世茅土妄假,名实相乖,自今唯有功勋乃得赐封,仍令子孙承袭。”于是旧赐五等爵,非有功者皆除之。

  [4]乙卯(二十三日),炀帝下诏,“近年来封侯进爵,名不符实,从今以后,只有建有功勋的人才能得到赐土封爵,仍让子孙承袭爵位。”于是过去赐的五等爵,没有功勋的都被削去爵位。

  [5]庚申,以所征周、齐、梁、陈散乐悉配太常,皆置博士弟子以相传授,乐工至三万余人。

  [5]庚申(二十八日),把所征召来的周、齐、梁、陈四朝的散乐艺人,都安排在太常,都设置博士弟子以便相互传授技艺,乐工达到三万余人。

  [6]三月,癸亥,帝幸江都宫。

  [6]三月,癸亥(初二),炀帝驾游江都营。

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