[目录]
资治通鉴 191-200 .司马光.

  1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78 | 79 | 80 | 81 | 82 | 83 | 84 | 85 | 86 | 87 | 88 | 89 | 90 | 91 | 92 | 93 | 94 | 95 | 96 | 97 | 98 | 99 | 100 | 101 | 102 | 103 | 104 | 105 | 106 | 107 | 108 | 109 | 110 | 111 | 112 | 113 | 114 | 115 | 116 | 117 | 118 | 119 | 120 | 121 | 122 | 123 | 124 | 125 | 126 | 127 | 128 | 129 | 130 | 131 | 132 | 133 | 134 | 135 | 136 | 137 | 138 | 139 | 140 | 141 | 142 | 143 | 144 | 145 | 146 | 147
上一页 下一页

  [20]癸卯,上猎于樊川;乙巳,还宫。

  [20]癸卯(十一日),太宗到樊川狩猎;乙巳(十三日),返回宫中。

  [21]魏徵上疏,以为:“在朝群臣,当枢机之寄者,任之虽重,信之未笃,是以人或自疑,心怀苟且。陛下宽于大事,急于小罪,临时责怒,未免爱憎。夫委大臣以大体,责小臣以小事,为治之道也。今委之以职,则重大臣而轻小臣;至于有事,则信小臣而疑大臣。信其所轻,疑其所重,将求致治,其可得乎!若任以大官,求其细过,刀笔之吏,顺旨成风,舞文弄法,曲成其罪。自陈也,则以为心不伏辜;不言也,则以为所犯皆实;进退惟谷,莫能自明,则苟求免祸,矫伪成俗矣!”上纳之。

  [21]魏徵上奏疏,认为:“在朝的众位大臣中,担当掌管枢密机要的,虽委以重任,但对他们的信任还不够笃诚,所以有的心存猜疑,抱得过且过的应付态度。陛下对大的事情较为宽容,却对小的过失不轻易放过,责怒下来,未免爱憎过于分明。委托大臣操持大事,责成小臣办小事,这是为政之道。如今各委托其职责,则不免重视大臣而轻慢小臣;遇到出了事,则又信任小臣而怀疑大臣。信任所轻慢的,怀疑所重视的,如此怎么能使国家达到大治呢?假如委任做大的官职,却求其小的过失,必然导致那些刀笔吏,顺从旨意诬告成风,舞文弄墨,百般构陷其罪。如果自己陈述呢,则认为内心不服罪;不加说明吧,就会被认为是所犯罪过属实,进退两难,不能辨明,这样就会导致群臣只求免于灾祸,必然矫饰虚伪成为风气。”太宗采纳他的意见

  [22]上谓侍臣曰:“朕虽平定天下,其守之甚难。”魏徵对曰:“臣闻战胜易,守胜难,陛下之及此言,宗庙社稷之福也!”

  [22]太宗对身边大臣说:“朕虽然平定了天下,但守成却很艰难。”魏徵答道:“我听说取得胜利容易,守住胜利果实较难,陛下说这些话,这是宗庙社稷国人的福气呀。”

  [23]上闻右庶子张玄素在东宫数谏争,擢为银青光禄大夫,行左庶子。太子尝于宫中击鼓,玄素叩阁切谏;太子出其鼓,对玄素毁之。太子久不出见官属,玄素谏曰:“朝廷选俊贤以辅至德,今动经时月,不见宫臣,将何以裨益万一!且宫中唯有妇人,不知有能如樊姬者乎。”太子不听。

  [23]太宗听说右庶子张玄素在东宫多次行谏,便提升他为银青光禄大夫,行左庶子职。太子曾在宫中击鼓,玄素叩门直言切谏;太子将鼓拿出来,当玄素的面毁掉。太子很久不出宫见属下官吏,玄素劝谏说:“朝廷遴选非常有才能的人来辅佐殿下,如今动辄经过数月,不见宫中臣属,这对将如何使他们对殿下有所裨益呢?而且宫中只有女人,不知是否有象樊姬待楚庄王那样贤惠的呢?”太子不听其谏言。

  玄素少为刑部令史,上尝对朝臣问之曰:“卿在隋何官?”对曰:“县尉。”又问:“未为尉时何官?”对曰:“流外。”又问:“何曹?”玄素耻之,出阁殆不能步,色如死灰。谏议大夫褚遂良上疏,以为:“君能礼其臣,乃能尽其力。玄素虽出寒微,陛下重其才,擢至三品,翼赞皇储,岂可复对群臣穷其门户!弃宿昔之恩,成一朝之耻,使之郁结于怀,何以责其伏节死义乎!”上曰:“朕亦悔此问,卿疏深会我心。”遂良,亮之子也。孙伏伽与玄素在隋皆为令史,伏伽或于广坐自陈往事,一无所隐。

  张玄素年轻时为刑部令史,太宗曾当朝中大臣的面问他:“你在隋朝时官居何职?”张玄素答道:“县尉。”又问:“县尉之前做何官?”答道:“九品之外未入流。”又问:“是哪一曹的小吏?”张玄素感到羞耻,走出殿门不能迈步,面如死灰。谏议大夫褚遂良上奏疏说:“君主如果能以礼待臣下,臣下才能尽心竭力。张玄素虽然出身寒微,但陛下重视他的才能,擢升他到三品,辅佐太子,怎么可以当着大臣们穷追他的出身呢?抛开往日的恩宠,造成一朝的羞耻,使他心怀不安忧虑,又怎么能责成人家尽忠效节呢?”太宗说:“朕也深深后悔问这些话,你的奏疏正与我的心思契合。”遂良是褚亮的儿子。孙伏伽与张玄素在隋朝都做令史,孙伏伽有时在大庭广众之下自陈往事,丝毫无所隐讳。

  [24]戴州刺史贾崇以所部有犯十恶者,御史劾之。上曰:“昔唐、虞大圣,贵为天子,不能化其子;况崇为刺史,独能使其民比屋为善乎!若坐是贬黜,则州县互相掩蔽,纵舍罪人。自今诸州有犯十恶者,勿劾刺史,但令明加纠察,如法施罪,庶以肃清奸恶耳。”

  [24]戴州刺史贾崇所辖部下有犯十恶罪的,御史弹劾贾崇。太宗说:“以前唐尧、虞舜圣王,贵为天子,还不能感化他们的儿子;何况贾崇身为刺史,能使其百姓个个行善吗!如果因此事而贬职,就会造成州县间相互掩盖,放纵犯人。从今往后各州有犯十恶罪的,不要弹劾刺史,只是令他们明加纠察,依法治罪,也许这样才可以肃清奸恶的发生。”

  [25]上自临治兵,以部陈不整,命大将军张士贵杖中郎将等;怒其杖轻,下士贵吏。魏徵谏曰:“将军之职,为国爪牙;使之执杖,已非后法,况以杖轻下吏乎!”上亟释之。

  [25]太宗亲自整治护卫士兵,见队列不整齐,命大将军张士贵杖打中郎将等人;又恼怒其杖打太轻,命拿下士贵送审。魏徵劝谏道:“将军的职务,是国家的爪牙;让他执杖打人,已经不足为后世效法,何况只因为杖打得轻就将他送审呢?”太宗急忙放了张士贵。

  [26]言事者多请上亲览表奏,以防壅蔽。上以问魏徵,对曰:“斯人不知大体,必使陛下一一亲之,岂惟朝堂,州县之事亦当亲之矣。”

上一页 下一页
  1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78 | 79 | 80 | 81 | 82 | 83 | 84 | 85 | 86 | 87 | 88 | 89 | 90 | 91 | 92 | 93 | 94 | 95 | 96 | 97 | 98 | 99 | 100 | 101 | 102 | 103 | 104 | 105 | 106 | 107 | 108 | 109 | 110 | 111 | 112 | 113 | 114 | 115 | 116 | 117 | 118 | 119 | 120 | 121 | 122 | 123 | 124 | 125 | 126 | 127 | 128 | 129 | 130 | 131 | 132 | 133 | 134 | 135 | 136 | 137 | 138 | 139 | 140 | 141 | 142 | 143 | 144 | 145 | 146 | 147
[目录]