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资治通鉴 281-290 .司马光.

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  [5]辛卯,契丹以晋主为负义侯,置于黄龙府。黄龙府,即慕容氏和龙城也。契丹主使谓李太后曰:“闻重贵不用母命以至于此,可求自便,勿与俱行。”太后曰:“重贵事妾甚谨。所失者,违先君之志,绝两国之欢耳。今幸蒙大恩,全生保家,母不随子,欲何所归!”

  [5]辛卯(初五),契丹封后晋出帝为负义侯,安置在黄龙府。黄龙府就是原慕容氏的和龙城。契丹主派人对李太后说:“听说重贵是不听母命才落到今天的下场;您可以自行方便,不要和他一起同行。”太后说:“重贵侍奉我很恭谨。他的失误是,违背了先君的意志,断绝了两国的交欢。现在有幸蒙受大恩,保全了身家性命,我做母亲的不随着儿子,又往哪儿寻求归宿呢!”

  癸巳,契丹迁晋主及其家人于封禅寺,遣大同节度使兼侍中河内崔廷勋以兵守之。契丹主数遣使存问,晋主每闻使至,举家忧恐。时雨雪连旬,外无供亿,上下冻馁。太后使人谓寺僧曰:“吾尝于此饭僧数万,今日独无一人相念邪!”僧辞以“虏意难测,不敢献食。”晋主阴祈守者,乃稍得食。

  癸巳(初七),契丹把后晋出帝和他全家人迁到封禅寺,派大同节度使兼侍中河内人崔廷勋领兵看守。契丹主多次派使者前去探望问候;后晋出帝每听说使者到,全家都惊恐担忧。当时雨夹雪下了十几天,寺外断绝了供给,全家老小又冷又饿。李太后派人对寺内的和尚说:“我曾在这里供给数万和尚的斋饭,现在难道就没有一个人记着我吗?”和尚以“契丹用心难料,不敢献上食品”为推辞。后晋出帝只好偷偷地哀求看守,才得到一点食物。

  是日,契丹主自赤冈引兵入宫,都城诸门及宫禁门,皆以契丹守卫,昼夜不释兵仗。磔犬于门,以竿悬羊皮于庭为厌胜。契丹主谓群臣曰:“自今不修甲兵,不市战马,轻赋省役,天下太平矣。”废东京,降开封府为汴州,尹为防御使。乙未,契丹主改服中国衣冠,百官起居皆如旧制。

  当天,契丹主率兵从赤冈进入宫中。都城各门和宫禁大门,都派契丹兵把守,昼夜不离兵器。并且在大门前杀狗,在庭院中竖起长竿挂上羊皮作为诅咒。契丹主对群臣说:“从今以后,不整治兵器,不购置战马,减轻赋税,少征徭役,天下太平了!”废除东京建制,降开封府为汴州,原府尹为防御使。乙未(初九)契丹主改穿中原衣冠,文武百官上朝退朝一切均按旧有的典章制度。

  赵延寿、张砺共荐李崧之才;会威胜节度使冯道自邓州入朝,契丹主素闻二人名,皆礼重之。未几,以崧为太子太师,充枢密使;道守太傅,于枢密院祗候,以备顾问。

  赵延寿、张砺一起荐举李崧的才华;正赶上威胜节度使冯道从邓州入朝,契丹主对二人的名声早有耳闻,都给予礼遇以示重视。不久,就命李崧为太子太师,充任枢密使;命冯道为太傅,在枢密院供职,担任顾问。

  契丹主分遣使者,以诏书赐晋之藩镇;晋之藩镇争上表称臣,被召者无不奔驰而至。惟彰义节度使史匡威据泾州不受命。匡威,建瑭之子也。雄武节度使何重建斩契丹使者,以秦、阶、成三州降蜀。

  契丹主又分别派出使者,将诏书赐给后晋的各个藩镇;各藩镇都争着上表章称臣,凡被召的没有不快马到达的。只有彰义节度使史匡威据守泾州不接受命令。史匡威是史建瑭的儿子。雄武节度使何重建,把来传诏书的契丹使者杀掉,率领秦、阶、成三州投降后蜀。

  初,杜重威既以晋军降契丹,契丹主悉收其铠仗数百万贮恒州,驱马数万归其国,遣重威将其众己而南。及河,契丹主以晋兵之众,恐其为变,欲悉以胡骑拥而纳之河流。或谏曰:“晋兵在他所者尚多,彼闻降者尽死,必皆拒命。不若且抚之,徐思其策。”契丹主乃使重威以其众屯陈桥。会久雪,官无所给,士卒冻馁,咸怨重威,相聚而泣;重威每出,道旁人皆骂之。

  当初,杜威恢复旧名杜重威领着后晋军投降契丹后,契丹主收缴了全部兵器铠甲,有数百万件之多,贮存于恒州;派人将军马数万匹北归其国中;派杜重威率领其部卒跟随自己南下。到了黄河岸边,契丹主看到投降的后晋兵卒太多,怕制造事变,想用自己的骑兵把他们统统赶进黄河。有人劝谏道:“晋兵在各地的还很多,他们听到投降的都死了,一定都会抗拒到底的;不如先安抚他们,慢慢地再想万全之策。”契丹主就派杜重威带领他的降兵屯驻陈桥。正赶上下雪多日,官没给粮饷,士兵们又冷又饿,都怨恨杜重威,相聚而哭泣;杜重威每出帐外,道旁的士兵都骂他。

  契丹主犹欲诛晋兵。赵延寿言于契丹主曰:“皇帝亲冒矢石以取晋国,欲自有之乎,将为他人取之乎?”契丹主变色曰:“朕举国南征,五年不解甲,仅能得之,岂为他人乎!”延寿曰:“晋国南有唐,西有蜀,常为仇敌,皇帝亦知之乎?”曰:“知之。”延寿曰:“晋国东自沂、密,西及秦、凤,延袤数千里,边于吴、蜀,常以兵戍之。南方暑湿,上国之人不能居也。他日车驾北归,以晋国如此之大,无兵守之,吴、蜀必相与乘虚入寇,如此,岂非为他人取之乎?”契丹主曰:“我不知也。然则奈何?”延寿曰:”陈桥降卒,可分以戍南边,则吴、蜀不能为患矣。”契丹主曰:“吾昔在上党,失于断割,悉以唐兵授晋。既而返为寇仇,北向与吾战,辛勤累年,仅能胜之。今幸入吾手,不因此时悉除之,岂可复留以为后患乎?”延寿曰:“向留晋兵于河南,不质其妻子,故有此忧。今若悉徙其家于恒、定、云、朔之间,每岁分番使戍南边,何忧其为变哉!此上策也。”契丹主悦曰:“善!惟大王所以处之。”由是陈桥兵始得免,分遣还营。

  契丹主还是想诛杀后晋降卒。赵延寿对他说:“皇帝亲自率兵冒着飞矢流石夺取了晋国江山,是想自己占有呢,还是想替他人夺取呢?”契丹主脸色突变道:“朕统率全国南征,五年不解衣甲,才刚刚得到,岂能是为他人!”赵延寿说:“晋南面有唐,西面有蜀,常常互为仇敌,皇帝也知道吧?”契丹主答:“知道。”赵延寿又说:“晋国东起沂州、密州,西至秦州、凤州,绵延广袤数千里,边境与吴、蜀相接,常要派兵镇守。南方暑热潮湿,北国人不能居住。他日您车驾北归,而这么辽阔的晋国疆土无兵把守,吴、蜀一定乘虚入侵,这样,难道不是为他人夺取江山吗?”契丹主说:“这是我没料到的。那么应该怎么办呢?”赵延寿说:“陈桥的降兵,可分开来把守南部边疆,这样吴、蜀就不能成为后患了。”契丹主说:“我过去在上党,失策在于当断不断,把唐兵交给晋。没想到反过来与我为仇,北面同我作战,辛苦勤劳好几年,才把他们战胜。现在有幸落在我的手里,不乘这时把他们翦除干净,难道还留作后患吗?”赵延寿说:“过去把晋兵留在河南,不将他们的妻子作为人质,所以才有这种忧患。现在如果把他们的家全迁到恒、定、云、朔各州之间,每年轮番让他们把守南部边疆,何怕他们发生突变!这是上策呵。”契丹主高兴地说:“对!全按你燕王的意见办理!”于是陈桥降兵才得豁免,分别遣返兵营。

  [6]契丹主杀右金吾卫大将军李彦绅、宦者秦继,以其为唐潞王杀东丹王故也。以其家族赀财赐东丹王之子永康王兀欲。兀欲眇一目,为人雄健好施。

  [6]契丹主杀右金吾卫大将军李彦绅和宦者秦继,因为他们曾为后唐潞王杀东丹王的缘故。并把他们家族的资财赏赐给东丹王的儿子永康王兀欲。兀欲瞎一只眼,为人豪迈雄健,慷慨好施。
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