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资治通鉴 281-290 .司马光.

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  赵在礼到洛阳,对人说:“契丹主曾说庄宗之乱由我引起。看来我此行,深可忧虑。”契丹派契丹的将领述轧、奚王拽剌、勃海将领高谟翰驻守洛阳,赵在礼进入谒见。在庭下叩拜,而拽剌等人都蹲坐着受礼。乙卯(二十九日),赵在礼到郑州,听说前往入朝的刘继勋被锁上,惊恐万分,到了夜里,在马房里自杀了。契丹主听说赵在礼自杀了,就释放了刘继勋,刘继勋忧虑愤恨而死。

  刘在契丹尝为枢密使、同平章事,至洛阳,诟奚王曰:“赵在礼汉家大臣,尔北方一酋长耳,安得慢之如此!”立于庭下以挫之。由是洛人稍安。

  刘在契丹曾为枢密使、同平章事等职,到了洛阳,责骂奚王拽剌道:“赵在礼是汉家的大臣,你只不过是北方的一个酋长罢了,怎敢这样怠慢他!”刘站在庭下大挫他的气焰。于是洛阳人稍得安定。

  契丹主广受四方贡献,大纵酒作乐,每谓晋臣曰:“中国事,我皆知之,吾国事,汝曹不知也。”

  契丹主广泛接受四面八方送上来的进贡礼品,大肆饮酒作乐,常常对原后晋的臣子说:“你们中原的事,我都知道;可我国的事,你们就不晓得了!”

  赵延寿请给上国兵廪食,契丹主曰:“吾国无此法。”乃纵胡骑四出,以牧马为名,分番剽掠,谓之“打草谷”。丁壮毙于锋刃,老弱委于沟壑,自东、西两畿及郑、滑、曹、濮,数百里间,财畜殆尽。

  赵延寿请求供给北国军队的粮饷,契丹主说:“我国没有这个法。”于是就四处放出胡骑兵,以放马为名,四处抢掠,称为“打草谷”。百姓中年轻力壮的死于契丹兵的刀口,年老体弱的填于沟壑,从大梁、洛阳的辖区直到郑、滑、曹、濮各州,几百里地的地面上,财产牲畜几乎抢掠一空。

  契丹主谓判三司刘曰:“契丹兵三十万,既平晋国,应用优赐,速宜营办。”时府库空竭,不知所出,请括借都城士民钱帛,自将相以下皆不免。又分遣使者数十人诣诸州括借,皆迫以严诛,人不聊生。其实无所颁给,皆蓄之内库,欲辇归其国。于是内外怨愤,始患苦契丹,皆思逐之矣。

  契丹主对判三司刘说:“契丹大军三十万,平掉了晋国,就应该发给丰厚的赏赐,要赶快准备操办。”当时官府仓库里已经空竭,刘不知从何处而出,于是就向都城的士人百姓借钱,自将相以下都免不了。又分别派遣几十名使者到各州中借款,都用严刑相威胁,民不聊生。其实钱本不颁发给契丹士兵,都聚积到皇宫内库里,打算装车运往本国。于是内外怨恨、愤怒,开始感到契丹的祸患痛苦,都想驱逐他们了。

  [12]初,晋主与河东节度使、中书令、北平王刘知远相猜忌,虽以为北面行营都统,徒尊以虚名,而诸军进止,实不得预闻。知远因之广募士卒;阳城之战,诸军散卒归之者数千人,又得吐谷浑财畜,由是河东富强冠诸镇,步骑至五万人。

  [12]当初,后晋出帝与河东节度使、中书令、北平王刘知远相互猜忌。虽然任命刘知远为北面行营都统,但徒有虚名罢了,各军的行动,实际上他一点都不能干预。刘知远因此大量招募士兵;阳城一战,各军的散兵游勇归附于他的有几千人,又得到吐谷浑的财产牲畜,于是各藩镇中河东最为富强,步兵、骑兵多达五万人。

  晋主与契丹结怨,知远知其必危,而未尝论谏。契丹屡深入,知远初无邀遮、入援之志。及闻契丹入汴,知远分兵守四境以防侵轶。遣客将安阳王峻奉三表诣契丹主:一,贺入汴;二,以太原夷、夏杂居,戍兵所聚,未敢离镇;三,以应有贡物,值契丹将刘九一军自土门西入屯于南川,城中忧惧,俟召还此军,道路始通,可以入贡。契丹主赐诏褒美,及进画,亲加“儿”字于知远姓名之上,仍赐以木拐。胡法,优礼大臣则赐之,如汉赐几杖之比,惟伟王以叔父之尊得之。

  后晋出帝和契丹结下怨隙,刘知远判断他必然凶多吉少,但从未加以劝谏。契丹屡次深入进犯,刘知远全然没有拦击、入援的打算。等到听说契丹已占据大梁,刘知远就分兵守护四方边境来防备侵袭。又派遣客将安阳人王峻向契丹主奉上三道表章:一是祝贺契丹进入大梁;二是因太原是夷、夏人杂居共处之处,守防士卒屯聚,所以不敢离镇前往朝贺;三是本应献上贡品,但正值契丹将领刘九一的军队从土门西入屯于南川,太原城中人心忧虑恐惧,待召还此军,道路畅通,才可以送入贡品。契丹主见表章后赐予诏书,称赞表彰,待亲自审批诏书时,又在刘知远的姓名上加上“儿”字,以示亲近,并赐给木。按照胡人的传统,受礼遇优待的大臣,才能赐予木,相当于汉人赐给几杖,只有伟王因为有其叔父的尊贵地位,才得到这种赏赐。

  知远又遣北都副留守太原白文珂入献奇缯名马,契丹主知知远观望不至,及文珂还,使谓知远曰:“汝不事南朝,又不事北朝,意欲何所俟邪?”蕃汉孔目官郭威言于知远曰:“虏恨我深矣!王峻言契丹贪残失人心,必不能久有中国。”

  刘知远又派遣北都副留守太原人白文珂献上珍奇的丝织品和名贵的马匹。契丹主知刘知远观望不到,等白文珂回太原时,契丹主让他告诉刘知远:“你既不奉事南朝,又不奉事北朝,你打算等什么呢?”蕃汉孔目官郭威对刘知远说:“胡虏对我们怨恨很深呵!王峻说契丹贪婪残暴失掉人心,一定不能长久占据中原。”

  或劝知远举兵进取。知远曰:“用兵有缓有急,当随时制宜。今契丹新降晋兵十万,虎据京邑,未有他变,岂可轻动哉!且观其所利止于货财,货财既足,必将北去。况冰雪已消,势难久留,宜待其去,然后取之,可以万全。”
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