[目录]
资治通鉴 281-290 .司马光.

  1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78 | 79 | 80 | 81 | 82 | 83 | 84 | 85 | 86 | 87 | 88 | 89 | 90 | 91 | 92 | 93 | 94 | 95 | 96 | 97 | 98 | 99 | 100 | 101 | 102 | 103 | 104 | 105 | 106 | 107 | 108 | 109 | 110 | 111 | 112 | 113 | 114 | 115 | 116 | 117 | 118 | 119 | 120 | 121 | 122 | 123 | 124 | 125 | 126 | 127 | 128 | 129 | 130 | 131 | 132 | 133 | 134 | 135 | 136 | 137 | 138 | 139 | 140 | 141 | 142 | 143 | 144 | 145 | 146 | 147 | 148 | 149 | 150 | 151 | 152 | 153 | 154 | 155 | 156 | 157 | 158 | 159 | 160 | 161 | 162 | 163
上一页 下一页

  欧阳修论曰:自古动乱、灭亡的国家,一定是先破坏了它的法制,然后动乱才跟随而起,这是势所必然的,五代的时候正是这样。白文珂、王守恩都是后汉的大臣,而周太祖郭威当时仅用一个枢密使的堂帖而更换,就像更换卫兵一样。当时周太祖并没有无视君主的异志,但所以能这样干,是因为习为常事,所以白文珂不敢违背,王守恩不敢抗拒。太祖既然不怀疑这种干法,后汉朝廷的君臣也置之不问,这难道不是因朝纳法纪败坏混乱到了极点,而导致这种局面吗!所以说,善于为国家着想的,不敢在小事上马虎,而且经常杜微防渐,能不警惕吗?

  [21]守恩至大梁,恐获罪,广为贡献,重赂权贵。朝廷亦以守恩首举潞州归汉,故宥之,但诛其用事数人而已。

  [21]王守恩来到大梁,害怕获罪,所以各处打点,用重礼贿赂权贵。朝廷也因为王守恩最先率潞州归降后汉,所以宽恕了他,只惩罚了他手下当权的几个人罢了。

  [22]马希萼悉调朗州丁壮为乡兵,造号静江军,作战舰七百艘,将攻潭州,其妻苑氏谏曰:“兄弟相攻,胜负皆为人笑。”不听,引兵趣长沙。

  [22]马希萼征调朗州所有的壮丁组成乡兵,创立军号为静江军;制造了七百艘战船,准备攻打潭州。他的妻子苑氏劝谏道:“兄弟互相攻打,无论胜败都将被外人嗤笑。”马希萼不听,率兵赶赴长沙。

  马希广闻之曰:“朗州,吾兄也,不可与争,当以国让之而已。”刘彦、李弘固争以为不可,乃以岳州刺史王为都部署战棹指挥使,以彦监其军。己丑,大破希萼于仆射洲,获其战舰三百艘。追希萼,将及之,希广遣使召之曰:“勿伤吾兄!”引兵还。,环之子也。

  马希广听到朗州军情后说:“朗州,那是我的哥哥,不能和他争斗,只应当把国家让给他罢了。”刘彦、李弘极力抗争认为不能这样做,于是派岳州刺史王为都部署战棹指挥使,派刘彦为监军。己丑(十八日),在仆射洲把马希萼的水军打得落花流水,俘获三百只战船。王追击马希萼,快追上时,马希广派使臣向他关照道:“不国伤害我哥哥!”王于是率兵返回。王是王环的儿子。

  希萼自赤沙湖乘轻舟遁归,苑氏泣曰:“祸将至矣,余不忍见也。”赴井而死。


  马希萼本人从赤沙湖乘小船逃回朗州。苑氏哭泣道:“大祸就要临头了,我不忍看见。”投井而死。

  [23]戊戌,郭威至大梁,入见,帝劳之,赐金帛、衣服、玉带、鞍马,辞曰:“臣受命期年,仅克一城,何功之有!且臣将兵在外,凡镇安京师、供亿所须、使兵食不乏,皆诸大臣居中者之力也,臣安敢独膺此赐!请遍赏之。”又议加方镇,辞曰:“杨位在臣上,未有茅土;且帷幄之臣,不可以弘肇为比。”九月,壬寅,遍赐宰相、枢密、宣微、三司、侍卫使九人,与威如一。帝欲特赏威,辞曰:“运筹建画,出于庙堂;发兵馈粮,资于藩镇;暴露战斗,在于将士;而功独归臣,臣何以堪之!”

  [23]戊戌(二十七日),郭威回到大梁,入朝拜见后汉隐帝,后汉隐帝慰劳他,赐给他金帛、衣服、玉带、鞍马。郭威推辞道:“臣接受命令一年,只攻克一座城,有什么功劳!而且我率领兵马在外,保卫、治理京城,供应军需物品、使军粮不缺,都是朝中众位大臣的力量,我怎么敢独自接受这些赏赐!请分赏给大家吧!”又建议加授他藩镇,他推辞道:“杨位置在我之上,尚且没有兼领藩镇之地;况且帷幄近臣不可以与史弘肇相比。”九月,壬寅(初二),通赏宰相、枢密使、宣徽使、三司使、侍卫使九个人,与郭威一样。后汉隐帝想特别赏赐郭威,郭威推辞道:“作战的运筹策划,出于朝廷;发兵运粮,依靠藩镇;野外战斗,在于将士,而把功劳只归我,为臣的怎能受得了!”

  乙巳,加威兼侍中,史弘肇兼中书令。辛亥,加窦贞固司徒,苏逢吉司空,苏禹左仆射,杨右仆射。诸大臣议,以朝廷执政溥加恩,恐藩镇觖望。乙卯,加天雄节度使高行周守太师,山南东道节度使安审琦守太傅,泰宁节度使符彦卿守太保,河东节度使刘崇兼中书令;己未,加忠武节度使刘信、天平节度使慕容彦超、平卢节度使刘铢并兼侍中;辛酉,加朔方节度使冯晖、定难节度使李彝殷兼中书令;冬,十月,壬申,加义武节度使孙方简、武宁节度使刘同平章事;壬午,加吴越王弘尚书令,楚王希广太尉;丙戌,加荆南节度使高保融兼侍中。议者以为:“郭威不专有其功,推以分人,信为美矣;而国家爵位,以一人立功而覃及天下,不亦滥乎!”

  乙巳(初五),郭威加任兼侍中,史弘肇加任兼中书令。辛亥(十一日)加任窦贞固为司徒、苏逢吉为司空、苏禹为左仆射、杨为右仆射。众大臣议论,因为朝廷中执掌政权的大臣普遍加受恩遇,恐怕各地藩镇埋怨失望。乙卯(十五日),加任天雄节度使高行周为守太师、山南东道节度使安审琦为守太傅、泰宁节度使符彦卿为守太保,河东节度使刘崇兼中书令。己未(十九日),加任忠武节度使刘信、天平节度使慕容彦超、平卢节度使刘铢都兼侍中。辛酉(二十一日),加任朔方节度使冯晖、定难节度使李彝殷都兼中书令。冬季,十月,壬申(初三),加任义武节度使孙方简、武宁节度使刘为同平章事。壬午(十三日),加任吴越王钱弘为尚书令、楚王马希广为太尉。丙戌(十七日),加任荆南节度使高保融兼侍中。议论的人认为:“郭威不独占功劳,而是把功劳推让分给别人,确实是高尚的行为;但是国家的爵位,因一个人立功而普及天下,不也太滥了吗!”

  [24]吴越王弘募民能垦荒田者,勿收其税,由是境内无弃田。或请纠民遗丁以增赋,仍自掌其事;弘杖之国门。国人皆悦。

  [24]吴越王招募农民能够开垦荒地的人,不收赋税,因此吴越境内没有闲弃的田。有官员请求查纠百姓户籍上遗漏的男丁来增加赋役,并申请自己掌管此事;钱弘命人在都城大门用杖打他。国人都很高兴。
上一页 下一页
  1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78 | 79 | 80 | 81 | 82 | 83 | 84 | 85 | 86 | 87 | 88 | 89 | 90 | 91 | 92 | 93 | 94 | 95 | 96 | 97 | 98 | 99 | 100 | 101 | 102 | 103 | 104 | 105 | 106 | 107 | 108 | 109 | 110 | 111 | 112 | 113 | 114 | 115 | 116 | 117 | 118 | 119 | 120 | 121 | 122 | 123 | 124 | 125 | 126 | 127 | 128 | 129 | 130 | 131 | 132 | 133 | 134 | 135 | 136 | 137 | 138 | 139 | 140 | 141 | 142 | 143 | 144 | 145 | 146 | 147 | 148 | 149 | 150 | 151 | 152 | 153 | 154 | 155 | 156 | 157 | 158 | 159 | 160 | 161 | 162 | 163
[目录]